पैरों की मेहंदी मैंने
किस मुश्किल से छुड़ाई थी
और फिर बैरन खुशबू से कैसी कैसी
बिनती की थी
प्यारी धीरे बोल
भरा घर जाग उट्ठेगा
लेकिन जब उसके आने की घड़ी हुई
सुबह से ऐसी झडी लगी
उम्र में पहली बार मुझे
बारिश अच्छी नहीं लगी.
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khushi जी , आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
जवाब देंहटाएंआप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
जवाब देंहटाएंभावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.
अच्छी कविता बहुत ही अच्छी
जवाब देंहटाएंवर्ड वेरीफिकेशन हटा लेँ , उपरोक्त तरीके से
उम्र में पहली बार मुझे
जवाब देंहटाएंबारिश अच्छी नहीं लगी.
बेहद नाज़ुक रचना .. बिना भीगे भी भीगी हुई रचना
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना ....
जवाब देंहटाएंलेकिन जब उसके आने की घड़ी हुई
जवाब देंहटाएंसुबह से ऐसी झडी लगी
उम्र में पहली बार मुझे
बारिश अच्छी नहीं लगी....
ऐसा भी होता है ..!