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रविवार, 25 जुलाई 2010

बारिश

पैरों की मेहंदी मैंने
किस मुश्किल से छुड़ाई थी
और फिर बैरन खुशबू से कैसी कैसी
बिनती की थी
प्यारी धीरे बोल
भरा घर जाग उट्ठेगा
लेकिन जब उसके आने की घड़ी हुई
सुबह से ऐसी झडी लगी
उम्र में पहली बार मुझे
बारिश अच्छी नहीं लगी.

8 टिप्‍पणियां:

  1. khushi जी , आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,

    जवाब देंहटाएं
  2. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ।

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी कविता बहुत ही अच्छी

    वर्ड वेरीफिकेशन हटा लेँ , उपरोक्त तरीके से

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्र में पहली बार मुझे
    बारिश अच्छी नहीं लगी.
    बेहद नाज़ुक रचना .. बिना भीगे भी भीगी हुई रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. लेकिन जब उसके आने की घड़ी हुई
    सुबह से ऐसी झडी लगी
    उम्र में पहली बार मुझे
    बारिश अच्छी नहीं लगी....
    ऐसा भी होता है ..!

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