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मंगलवार, 14 जून 2011

"तुम बिन .......!"

एक फिल्म, ऐसे ही एक्सपेरिमेंटल टाइप की ," तुम बिन...!"
याद है उसका गाना:






तुम बिन क्या है जीना
 तुम बिन क्या है जीना


  तुम बिन जिया जाए कैसे
कैसे जिया जाए तुम बिन


सदियों से लम्बी हैं रातें
 सदियों से लम्बे हुए दिन


आ जाओ लौट कर तुम
 ये दिल कह रहा है


तुम बिन..........
फिर शाम-ए-तन्हाई जागी
फिर याद तुम आ रहे हो


फिर जाँ मचलने लगी है
फिर मुझको तड़पा रहे हो


इस दिल में यादो के मेले
तुम बिन बहुत हम अकेले


आ जाओ लौट कर तुम
         ये दिल कह रहा हैतुम.............!

रविवार, 3 अप्रैल 2011

याद है है यह गाना:

 खामोश सा अफ़साना
पानी से लिखा होता 
न तुमने कहा होता
न हमने सूना होता
खामोश सा अफ़साना....

सहमे से रहतें हैं
जब ये दिन ढलता है
एक दिया बुझता है
एक दिया जलता है
तुमने कोइ दीप जलाया होता
खामोश सा अफ़साना...

दिल की बात न पूछो
दिल तो आता रहेगा 
दिल बहकता रहा है
दिल बहकाता रहेगा
तुमने दिल को कुछ समझाया होता
खामोश सा अफ़साना.....

कितने साहिल ढूंढे
कोई  न सामने आया 
जब मझधार में डूबे
साहिल थामने आया
तुमने साहिल को पहले बुलाया होता
खामोश सा अफ़साना....



बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

प्रश्! तुम्हे याद है....?

मेरी साडी के एक छोर पर तुमने एक दिन  कुछ लिखा था. मैंने  वह साड़ी उस दिन के बाद न धोई, न पहनी! आज इतने दिन बाद , जब वो लिखावट बेमानी है, अलमारी से गिर कर ,साड़ी ने वह लम्हे ज़िंदा कर दिए हैं. मैंने पढ़ा तो देखा, धीमे से एक कविता बन गयी है:
शाम होने को है
लाल सूरज समंदर में खोने को है
और उसके परे कुछ परिंदे
कतारें बनाए
उनीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोसलें
ये परिंदे वहीं लौट कर जाएंगे 
शाम होने को है
हम कहाँ जाएंगे?
                जावेद अख्तर 


रविवार, 30 जनवरी 2011

तुम और मै

 मै कहूं यदि तो
क्या तुम रुक जाओगे?
पीछे पीछे आई तो 
क्या मेरी ओर झुक जाओगे? 
नहीं नहीं,
तो फिर तुम लौट जाओ
मेरे निकट मत आओ!
मेरे हाथों में 
प्रार्थना, फूल पूजा रहने दो, 
मेरी पीड़ा को 
स्वयं मुझे ही सहने दो !  

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

तुम्हारे लिए

मेरे प्यार!
मेरे मन ने सदैव चाहा
तुम्हारे घाव भरना
अब तुम कहोगे '
घाव भरना तो बोरोलीन भी जानती है'
लेकिन उसका स्पर्श नहीं है
मेरे अधरों की तरह कोमल
मैंने सदैव चाहा
अपनी ऊष्मा से तुम्हे तप्त कर ऊर्जा देना
अब तुम कहोगे
ये तो हीटर भी कर सकता है
पर नहीं है उसकी ऊष्मा में, मेरे प्यार की हिद्दत
मैंने सदैव चाहा तुम्हारे प्यार को अपने
तन-मन में संजो कर, एक संसार रच डालना
अब तुम कहोगे
ये काम तो करता  है सूरज भी
धरती के गर्भ से पानी लेकर
मैंने सदैव चाहा
उस संसार के लिए खाना-पानी जुटाना
अब तुम कहोगे
ये काम तो करती हैं हरी पत्तियाँ भी
सारे संसार के लिए, ज़रा सा क्लोरोफिल भून के
मेरी जान!!!
समझो तो सही सृष्टी औरत ही तो है
जो जीती है अपने सृजन की खातिर
और इतनी सुखी औरत जिससे कोई नहीं कहता
'ये काम तो तुम से अच्छा वोरोलीन, सूरज या पत्तियाँ करती हैं!!'
                                                                    -खुशी

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

जब मधुश्रुत की
पागल बयार छाएगी
सूनी रजनी
दुल्हिन सी शर्माएगी
तब सुबह
सेज के सुमनों को छू लेना
उनमे तुमको 
मेरी सुगंध आएगी 
-अज्ञात 

सोमवार, 1 नवंबर 2010



खयालो-ख्वाब हुआ, बर्गोबार का मौसम
बिछुड़ गया तेरी सूरत बहार का मौसम
कई रुतो से मेरे नीम वा दरीचों पर
ठहर गया है इंतज़ार का मौसम 
हवा चली तो नई बारिशें भी  साथ आई
ज़मी के चेहरे पे आया निखार का मौसम
वो रोज़ आके मुझे अपना प्यार पहनाए
मेरा गुरूर है बेले के हार का मौसम
रफ़ाक़तों के नए ख्वाब खुशनुमा हैं मगर
गुज़र चुका है तेरे ऐतबार का मौसम 
तेरे तरीका ऐ मोहब्बत पे बारहा सोंचा
ये जब्र था कि तेरे अख्तियार का मौसम