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शनिवार, 17 जुलाई 2010

आओ कि कोई ख्वाब बुने कल के वास्ते
वरना ये रात आज के संगीन दौर की
डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ इस तरह कि जान-ओ-दिल
ताउम्र फिर कभी न कोई ख़्वाब बुन सके.......  

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