कैद में गुजरेगी जो, वो उम्र बड़े काम कि थी
पर मै क्या करती कि ज़ंजीर तेरे नाम कि थी
जिसके माथे पे मेरे बख्त का तारा चमका
चाँद के डूबने कि बात उसी शाम की थी
वो कहानी कि सभी सुइयां निकली भी न थी
फिक्र हर शख्स को शहजादी के अंजाम कि थी
बोझ उठाये हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मी माँ ! तेरी ये उम्र तो आराम की थी
( परवीन शाकिर)
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Aapki trah hasin javan hai...aur bahuto ke lie jine ka sahara b hai
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