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शनिवार, 3 जुलाई 2010

तुम मुझको गुडिया कहते हो
सच कहते हो
खेलने वाले सब हाथों को 
गुडिया ही तो लगती हूँ मै
जो पहना दो मुझपे सजेगा
मेरा कोई रंग नई
जिस बच्चे के हाथ थमा दो
मेरी किसी से जंग नहीं
कूक भरो बीनाई लेलो
जब चाहे बीने लेलो
मांग भरो सिन्दूर सजाओ
प्यार करो
आँखों में बसो
और जब दिल भर जाए तो
दिल से उठा के टाक पे रख दो
तुम मुझको गुडिया कहते हो
सच ही तो कहते हो
                 प्रस्तुति : खुशी
परवीन शाकिर 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज तुम मेरे लिए हो

    प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

    मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
    मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
    आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
    प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

    रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
    आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
    तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
    प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

    वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
    वह सुधा के स्वाद से जाए छला क्या,
    जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
    प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

    मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
    पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
    मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
    प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

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  2. bahut khoobsoorat!!!! tumhari pasand ki daad deti hu!!! lage raho dear!!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. thanks....
    Hey eshwar tune kiya hai kya?
    Ped, poudhe, sarita-samudra, van-suman
    Sab khush aur teek!
    Par ye manav! uska tune kyon nirman kiya?

    जवाब देंहटाएं