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रविवार, 18 जुलाई 2010

कड़ी धूप में छाओं जैसी बातें करतें हैं
आंसू भी तो माओं जैसी बातें करतें हैं

रास्ता देखने वाली आँखों के अन्होने ख़्वाब
प्यास में भी दरयाओं जैसी बातें करते हैं

खुद को बिखरता देखते हैं कुछ कर नहीं पातें हैं
फिर भी लोग खुदाओं जैसी बातें करतें हैं

एक ज़रा सी जोत के बल पर अंधियारों से बैर
पागल दिए हवाओं जैसी बातें करें हैं 






4 टिप्‍पणियां:

  1. ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया .....आप हमारे ब्लॉग पर आये और अपनी राय से हमे नवाज़ा उसके लिए शुक्रिया जान कर बहुत ख़ुशी हुई की आपने पहले जिब्रान साहब को पड़ा है और उम्मीद करता हूँ की उनसे मुतमईन भी होंगी....मेरी कोशिश रहेगी जो जिब्रान साहब का अमूल्य साहित्य आपको मेरे ब्लॉग पर मिल सके .........और जज़्बात पर आपकी राय अच्छी लगी...अगर आप चाहती हैं की मेरे ब्लोग्स की हर पोस्ट की अपडेट आप तक पहुंचे तो कृपया ब्लॉग को फ़ॉलो करें ......एक बार फिर आपका शुक्रिया....

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  2. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  3. हौसलाफजाई का शुक्रिया.....

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  4. हौसलाफजाई का शुक्रिया.....

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