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बुधवार, 22 सितंबर 2010

हजरत अमीर खुसरो, और कबीर को अर्पित , जिसकी आज समाज को बहुत ज़रूरत है






मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा
एक खुदा का वास

जैसा जिसने ढून्ढ लिया,
उसका वैसा "ख़ास"

रब तो सबका एक है
दिल है उसका धाम

प्यार मोहब्बत बांटना
है इंसा का काम

मन से उसको ढूँढो तो
 माटी में मिल जाए 

साहिब मेरा भोला सा
बच्चो में मुस्काए 



गुरुवार, 9 सितंबर 2010

सब से मिले वो शाना-ब- शाना, हमसे मिलाए खाली हाथ
ईद के दिन भी, सच पूछो तो ईद मनाई लोगों ने

 

ईद आई तुम न आए, क्या मज़ा फिर ईद का
ईद ही तो नाम है एक दूसरे के दीद का
सुना है ईद का दिन आ गया है
तुम्हारे दीद का दिन आ गया है 

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

ईद


ईद आई है
 तो सब कुछ नया है
रंग भी हैं
फूल भी ओंर खुशबू भी
ज़र्रे ज़र्रे पे नशा है
नई रौनक है
हर एक शय पे आखिर ईद का हक है
चाँद  शादा है,ज़मी खुश है
चमन है रौशन
ईद से खुश हैं सब
ये बस मुझको ही तंग करती है
तुम ही सोचो मेरी जान!!
खंडहरों में भी कही ईद मना करती है



बुधवार, 1 सितंबर 2010


तू है राधा अपने कृष्ण की
तिरा कोई भी होता नाम
मुरली तेरे भीतर बाजती
किस बन भी करती बिसराम
या कोई सिंहासन बिराजती
तुझे खोज ही लेते श्याम
जिस संग भी फेरे डालती
संजोग में थे घनश्याम
क्या मोल तू मन का मांगती
बिकना था तुझे बेदाम
बंसी की मधुर तानो से
 बसना था ये सूना धाम
तिरा रंग भी कौन सा अपना
मोहन का भी एक ही काम
गिरधर आके भी गए और
मन माला है वही नाम
जोगन का पता भी क्या हो
कब सुबह हुई कब शाम
                                     -परवीन शाकिर  

ये हवाएं क्यों उड़ा ले गयी आँचल मेरा
यूँ सताने की आदत तो मेरे घनश्याम की थी
                                        -परवीन शाकिर