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गुरुवार, 15 जुलाई 2010

हथेलिओं कि दुआ फूल लेके आई हो
कभी तो रंग मेरे हाथ का हिनाई हो

कोई तो हो जो मेरे मन को रौशनी भेजे
किसी का प्यार हवा मेरे नाम लाइ हो

गुलाबी पाँव मेरे चंपाई बनाने को
किसी ने सहन में महंदी कि बाढ़ उगाई हो

वो  सोते जागते रहने के मौसमो का फूसों
के नींद में रहू और नींद भी न  आई हो ..........
                                - परवीन शाकिर                     


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