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सोमवार, 14 जून 2010

सर्दी कि वह शाम

तुम कहते थे 
किस मिट्टी की बनी हो
बहकती क्यों नहीं
मेरे साथ रह कर भी
हमदम!
बादल जब खामोशी से
पर्बतों को चूमने लगे थे
मैंने बेखुदी मै
तुम्हारा कंधा थाम लिया था
तुम्हे याद है
मेरे बहकने की वह शाम
सर्दी की वह शाम  
 

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