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सोमवार, 14 जून 2010

क्या भुलाऊँ

तुम कहते हो वह अतीत था
उसे भुला दो
बोलो भूल जाऊं वह मीठा लम्हा
जब कि तुमने मुझे पहली बार छुआ था
भूल जाऊं वह मासूम सा वक्त कि जब तुमने मुझे
ठिठोली कर जतलाया था कि 
तुम मुझे चाहते हो
भूल जाऊं वह क्षण 
जब कि तुम पहली बार जले थे 
किसी और ने मेरी तारीफ़ की थी तो
भूल जाऊं वह बेखुद लम्हे
जब कि तुम बेखुद बेसुध से
मुझे जकड जडवत रह गए थे 
पूरे साड़े आठ मिनट 
मेने रोते हुए कहा था 
तुम्हारे बाद नहीं छूँगी  किसीको
क्या तुम्हे कुछ भी याद नहीं
कुछ भी नहीं
और जब नहीं ही याद 
तो आकर लेजाओ वो नन्ही गुडिया 
जो तुमने मुझे मेले से लेकर दी थी
चाबी का वह छल्ला
जिसमे मेरे नाम का पहला अक्षर
गूंथ लाए थे तुम 
और जिसे लेकर सिसक पडी थी मै
आकर फिर से छीन लो
वही शंख जिसे तुम्हारे कमरे से जाते वक्त
ऐसे सहेज लाई थी 
जैसे मंदिर से लौटते वक्त वेदी का कोईं फूल
धो दो उस रूमाल को
जिससे तुमने एक बार मुह पोंछा था
और मैने उसे
उसके बाद कभी नहीं धोया
अगर तुम सचमच  भूल चुके हो तो प्रियतम 
प्रार्थना करो कि अब जीवन मुझे मुक्ति देदे 
क्योंकि देह के साथ ही
तुम्हारा प्रेम मिटेगा
प्रेम में ईश्वर है 
यह एहसास मिटेगा
                     -ख़ुशी

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