बड़े ताबां बड़े रोशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना तासहर आसां नहीं होता........
याद नहीं किस किसकी हल्की सी यादें ज़हन में घुस कर शोर करती हैं, लेकिन इतना याद होता है शेर किसी नामी गिरामी शाएर का है बिलकुल जैसे नीचे वाली नज़म:
"काश वो रोज़े हश्र भी आये"
तू मेरे हमराह खड़ा हो
सारी दुनिया पत्थर लेकर
जब मुझको संगसार करे
तू अपनी बांहों में छुपा कर
तब भी मुझसे प्यार करे
इन नज्मों के ज़िंदा कलेक्शन से दिल धड़क तो जाता है पर इतना भी लगता है कि बड़ा कलेजा चाहिए इतना सच लिखने और सोंचने के लिए..... नहीं क्या.
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