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सोमवार, 1 नवंबर 2010



खयालो-ख्वाब हुआ, बर्गोबार का मौसम
बिछुड़ गया तेरी सूरत बहार का मौसम
कई रुतो से मेरे नीम वा दरीचों पर
ठहर गया है इंतज़ार का मौसम 
हवा चली तो नई बारिशें भी  साथ आई
ज़मी के चेहरे पे आया निखार का मौसम
वो रोज़ आके मुझे अपना प्यार पहनाए
मेरा गुरूर है बेले के हार का मौसम
रफ़ाक़तों के नए ख्वाब खुशनुमा हैं मगर
गुज़र चुका है तेरे ऐतबार का मौसम 
तेरे तरीका ऐ मोहब्बत पे बारहा सोंचा
ये जब्र था कि तेरे अख्तियार का मौसम 

14 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ुशी जी,

    बहुत खुबसूरत अहसास समेटे है ये ग़ज़ल......मौसम....बहुत खूब.

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  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  3. kaya baat hai khushi ji.... itne khubsurat nagme kaha se lati hai.

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  4. सुन्दर रचना। बधाई।आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  5. क्या बात है!
    मौसम, मौसम! लवली मौसम!
    आशीष
    ---
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  6. बहुत ही सुन्दर....

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  7. लगता है थोड़ी देर हो गयी आने में....

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