खयालो-ख्वाब हुआ, बर्गोबार का मौसम
बिछुड़ गया तेरी सूरत बहार का मौसम
कई रुतो से मेरे नीम वा दरीचों पर
ठहर गया है इंतज़ार का मौसम
हवा चली तो नई बारिशें भी साथ आई
ज़मी के चेहरे पे आया निखार का मौसम
वो रोज़ आके मुझे अपना प्यार पहनाए
मेरा गुरूर है बेले के हार का मौसम
रफ़ाक़तों के नए ख्वाब खुशनुमा हैं मगर
गुज़र चुका है तेरे ऐतबार का मौसम
तेरे तरीका ऐ मोहब्बत पे बारहा सोंचा
ये जब्र था कि तेरे अख्तियार का मौसम
ख़ुशी जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अहसास समेटे है ये ग़ज़ल......मौसम....बहुत खूब.
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंkaya baat hai khushi ji.... itne khubsurat nagme kaha se lati hai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना। बधाई।आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंaap itni achi line lati kaha se hai,
जवाब देंहटाएंthoda hame bhi kuch bataiye...
क्या बात है!
जवाब देंहटाएंमौसम, मौसम! लवली मौसम!
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगी यह रचना
जवाब देंहटाएंthnx 2 all of u
जवाब देंहटाएंbahut khoob, khushi ji!!!
जवाब देंहटाएंkeep it up
imraan ji ko special thnx
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर....
जवाब देंहटाएंलगता है थोड़ी देर हो गयी आने में....
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