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रविवार, 3 अप्रैल 2011

याद है है यह गाना:

 खामोश सा अफ़साना
पानी से लिखा होता 
न तुमने कहा होता
न हमने सूना होता
खामोश सा अफ़साना....

सहमे से रहतें हैं
जब ये दिन ढलता है
एक दिया बुझता है
एक दिया जलता है
तुमने कोइ दीप जलाया होता
खामोश सा अफ़साना...

दिल की बात न पूछो
दिल तो आता रहेगा 
दिल बहकता रहा है
दिल बहकाता रहेगा
तुमने दिल को कुछ समझाया होता
खामोश सा अफ़साना.....

कितने साहिल ढूंढे
कोई  न सामने आया 
जब मझधार में डूबे
साहिल थामने आया
तुमने साहिल को पहले बुलाया होता
खामोश सा अफ़साना....



5 टिप्‍पणियां:

  1. कितने साहिल ढूंढे
    कोई न सामने आया
    जब मझधार में डूबे
    साहिल थामने आया
    तुमने साहिल को पहले बुलाया होता
    खामोश सा अफ़साना....

    बहुत गहरा भाव भरा है इन पंक्तियों में , दिल को बहुत सुंदर शब्दों में परिभाषित किया है ..और इसकी चंचलता को सही शब्द दिए हैं आपने ...आपका आभार

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  2. याद तो नहीं था.....मैंने तो पहली दफा ही देखा ....बोल तो शानदार हैं कौन सी फिल्म का है?

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  3. सुरेश वाडकर और लता जी की आवाज़
    बोल निदा फाजली जी के!!!
    फिल्म शायद " इजाज़त" या "लिबास"

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  4. खामोश सा अफ़साना
    पानी से लिखा होता
    न तुमने कहा होता
    न हमने सूना होता
    खामोश सा अफ़साना....bhut hi khubsurat panktiya hai...dil ke sare bhaavo ko apne me samete hue hai.... very nice...

    जवाब देंहटाएं
  5. मैनें कभी भी नही सुना। लेकिन अब जरूर सुनना चाहता हुॅ। क्योंकि बोल तो अच्छे है तो जाहिर है राग भी अच्छा ही होगा।

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