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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

सब से मिले वो शाना-ब- शाना, हमसे मिलाए खाली हाथ
ईद के दिन भी, सच पूछो तो ईद मनाई लोगों ने

 

ईद आई तुम न आए, क्या मज़ा फिर ईद का
ईद ही तो नाम है एक दूसरे के दीद का
सुना है ईद का दिन आ गया है
तुम्हारे दीद का दिन आ गया है 

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह....वाह........क्या खूब शेर अर्ज़ किये है आपने "ईद" के मुबारक मौके पर ..........आपको और आपके चाहने वालों को "ईद मुबारक"

    जज़्बात .... पर नई पोस्ट ज़रूर पढ़े |

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  2. ईद आई तुम न आए, क्या मज़ा फिर ईद का

    ye line hame bhot achi lagi hai aapki....
    very nice khushi ji

    जवाब देंहटाएं
  3. ख़ुशी जी,

    जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया .............जहाँ तक बात मज़हब की है तो किसी शायर का इरादा उससे अलग हटने का नहीं ये सिर्फ भाव है यहाँ काबा तेरे कूचे में से मतलब है की अपना सब कुछ जो सबसे ऊंचा है वो तेरे ही रास्तो से होकर गुज़रता है, शायरी में लफ्जों की नहीं भावो की अहमियत होती है फिर भी अगर कुछ गलत लगा हो तो माफ़ी चाहता हूँ .......आइन्दा ख्याल रखूँगा |

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  4. ईद आई तुम न आए, क्या मज़ा फिर ईद का
    bahut hee khoobsurat line...dil ko chhoo gayi..badhayi

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