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(1)
आज पूरे हो
कोई दुख नहीं
कोई उलझन नहीं
बादलों पर चलते हो
हवा पर हुकुम चलाते हो
कभी याद करते हो
उस अधूरेपन को
जो सिर्फ पूरा होता था
हमारे मिलने पर
जँहा से मिली थी
पूरे होने की प्रेरणा
जँहा से उपजी थी चाह
फैली थी उजास
जिए थे तुम
सपनो के आस पास
आज
आज पूरे हो
तो याद नहीं आता
वह अधूरापन?
सर नहीं उठाती
कोई तड़पन?
दिल पर हाथ रख कर कहो
क्या तुम पूरे हो?
या मेरी ही तरह
आज तक
अधूरे हो?
(2)
मै खिलौना थी
तो तोड़ने की अपेक्षा
छोड़ गए होते
मै फूल थी तो मसलने कि बजाय
सुखा कर डायरी में रख लिया होता
मै अगर औरत सी लगती थी
तो मन की निजता मै एक कोना तो दिया होता
अफ़सोस !!!!
तुम्हारे लिए तो मै सिर्फ एक ज़ात थी
क्षुद्र! अछूत!! विजातीय!!!
कितने विशेषण थे
जो मैंने तब सुने थे
जब कोई मर्द औरत को छोड़ते हुए जाता है
सही ही कहा था तुमने
ज़ात तो पुरुष की होती है
औरत तो हमेशा
ब्रहम्मा के पैरों से ही जन्मी है
(3)
मन तो अकेला है
तन से भी ज़्यादा
मन तो घायल है
तन से भी ज़्यादा
मन तो दुखता है
तन से भी पहले
तो मै !!
मन का बंधन थी
तभी ही,
आज जब तन की हर ज़रूरत पूरी है
शायद मै तुम्हे मन बन कर याद आ रही हूँ
शिशिर कि रात्री मै
चौदस के चंद्रमा सी तड़पा रही हूँ!!!!
सुंदर रचनाएं .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंआज पूरे हो
जवाब देंहटाएंकोई दुख नहीं
कोई उलझन नहीं
बादलों पर चलते हो
हवा पर हुकुम चलाते हो
bahut hee sundar rachana
ख़ुशी जी,
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह ..............तीनो रचनाये एक से बढकर एक इसलिए कमेन्ट एक-एक करके :-
पहला - सिर्फ एक शेर मेरे ब्लॉग की एक पोस्ट से -
"मुझको ग़ुरबत ने डसा, और उसको दौलत की हवास,
बिक गया बहरहाल, वो भी मेरे फन की तरह "
दूसरा - औरत की दिल की तकलीफ बयाँ करती एक मर्मस्पर्शी रचना |
तीसरा - इन पंक्तियों ने दिल जीत लिया -
"मन तो अकेला है
तन से भी ज़्यादा
मन तो घायल है
तन से भी ज़्यादा
मन तो दुखता है
तन से भी पहले "
काफी दिनों की ख़ामोशी के बाद आपके ब्लॉग पर इकट्ठी ये तीनो रचनाये बहुत अच्छी लगी|
खुशी जी......... सारी रचनाएंं बहुत ही सुन्दर एवं अविस्मरणीय है।
जवाब देंहटाएंकमाल की रचनाएँ, बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंword verification hata dijiye.
जवाब देंहटाएंbahut acha hai...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!