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बुधवार, 11 अगस्त 2010

ईद का चाँद

चाँद देखा तो याद आई सूरत तेरी 
हाथ उट्ठे हैं मगर हर्फे दुआ याद नहीं

3 टिप्‍पणियां:

  1. "हाथ उट्ठे हैं मगर हर्फे दुआ याद नहीं"

    सुभानल्लाह ख़ुशी जी ...बहुत खुबसूरत जज़्बात हैं....और ईद का चाँद तो माशाल्लाह है ही तारीफ़ के काबिल....पर मोहतरमा अभी ईद में काफी वक़्त है ..

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