कुल पेज दृश्य

पृष्ठ

फ़ॉलोअर

Powered By Blogger

रविवार, 27 जून 2010



इससे पहले कि तुम बदल जाओ
ऐ दोस्त मेरी ग़ज़लों में ढल जाओ

मंगलवार, 15 जून 2010

कल सुलगती दोपहर में, उसकी यादों के गुलाब
इस तरह महके कि सारा घर गुलिस्ता हो गया
                                         निदा फाज़ली 

सोमवार, 14 जून 2010

तन्हाई

इसके बाद बहुत तन्हाँ है, जैसे जंगल का रास्ता
जो भी तुमसे प्यार से बोले साथ उसी के हो लेना
                                                    -डा.- बशीर बद्र 

सर्दी कि वह शाम

तुम कहते थे 
किस मिट्टी की बनी हो
बहकती क्यों नहीं
मेरे साथ रह कर भी
हमदम!
बादल जब खामोशी से
पर्बतों को चूमने लगे थे
मैंने बेखुदी मै
तुम्हारा कंधा थाम लिया था
तुम्हे याद है
मेरे बहकने की वह शाम
सर्दी की वह शाम  
 

क्या भुलाऊँ

तुम कहते हो वह अतीत था
उसे भुला दो
बोलो भूल जाऊं वह मीठा लम्हा
जब कि तुमने मुझे पहली बार छुआ था
भूल जाऊं वह मासूम सा वक्त कि जब तुमने मुझे
ठिठोली कर जतलाया था कि 
तुम मुझे चाहते हो
भूल जाऊं वह क्षण 
जब कि तुम पहली बार जले थे 
किसी और ने मेरी तारीफ़ की थी तो
भूल जाऊं वह बेखुद लम्हे
जब कि तुम बेखुद बेसुध से
मुझे जकड जडवत रह गए थे 
पूरे साड़े आठ मिनट 
मेने रोते हुए कहा था 
तुम्हारे बाद नहीं छूँगी  किसीको
क्या तुम्हे कुछ भी याद नहीं
कुछ भी नहीं
और जब नहीं ही याद 
तो आकर लेजाओ वो नन्ही गुडिया 
जो तुमने मुझे मेले से लेकर दी थी
चाबी का वह छल्ला
जिसमे मेरे नाम का पहला अक्षर
गूंथ लाए थे तुम 
और जिसे लेकर सिसक पडी थी मै
आकर फिर से छीन लो
वही शंख जिसे तुम्हारे कमरे से जाते वक्त
ऐसे सहेज लाई थी 
जैसे मंदिर से लौटते वक्त वेदी का कोईं फूल
धो दो उस रूमाल को
जिससे तुमने एक बार मुह पोंछा था
और मैने उसे
उसके बाद कभी नहीं धोया
अगर तुम सचमच  भूल चुके हो तो प्रियतम 
प्रार्थना करो कि अब जीवन मुझे मुक्ति देदे 
क्योंकि देह के साथ ही
तुम्हारा प्रेम मिटेगा
प्रेम में ईश्वर है 
यह एहसास मिटेगा
                     -ख़ुशी

सोमवार, 7 जून 2010

मोहब्ब्त

मोहब्ब्त
मोहब्ब्त एक खुशबू है, हमेशा साथ चलती है
कोई इंसान तन्हाई में भी तनहा नहीं रहता

गुरुवार, 3 जून 2010

मुहब्बत हम से करनी है


मुहब्बत हम से करनी है तो फिर वादा नहीं करना
ये कि हमने देखा हैये वादे टूट जाते हैं
मुहब्बत हम से करनी है
तो फिर जिद भी नहीं करना
इसी जिद से ये देखा है कि
साथी छूट जातें हैं


मुहब्बत हम से करनी है
तो फिर तोहफे नहीं देना
कि हमने देखा है ये तोहफे
बड़ा मजबूर करतें हैं


मुहब्बत हम से करनी है
तो फिर शिकवा नहीं करना
कि हमने देखा है
ये शिकवे दिलों को दूर करते हैं

मुहब्बत के हंसी लम्हों में 
दिल रंजूर करते हैं 

आजकल

बड़े ताबां बड़े रोशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना तासहर आसां नहीं  होता........ 
याद नहीं किस किसकी हल्की सी यादें ज़हन में घुस कर शोर करती हैं, लेकिन इतना याद होता है शेर किसी नामी गिरामी शाएर का है बिलकुल जैसे नीचे वाली नज़म:
"काश वो रोज़े हश्र भी आये" 
तू मेरे हमराह खड़ा हो
सारी दुनिया पत्थर लेकर 
जब मुझको संगसार करे 
तू अपनी बांहों में छुपा कर 
तब भी मुझसे प्यार करे 
इन नज्मों के ज़िंदा कलेक्शन से दिल धड़क तो जाता है पर इतना भी लगता है कि बड़ा कलेजा चाहिए इतना सच लिखने और सोंचने के लिए..... नहीं क्या.  

मंगलवार, 1 जून 2010

इब्ने इन्शां

प्रीत करना तो हम से निभाना सजन
हमने पहले ही दिन था कहा न सजन

अब जो होने के किस्से सभी हो चुके
तुम हमें खो चुके हम तुम्हे खो चुके

आगे दिल की न बातों में आना सजन
के ये दिल है सदा का दीवाना सजन

ये भी सच है न कुछ बात जी की नई
सूनी रातों में देखा किए चांदनी

पर ये सोदा है हमको पुराना सजन
और जीने का अपने बहाना सजन

एक मुद्दत हुई सब्र करते हुए
और कूए  वफ़ा से गुज़रते हुए

पूछकर इस गदा का ठिकाना सजन
अपने इंशा को भी देख आना सजन 
शाख-ए- बदन को ताज़ा फूल निशानी दे
कोई तो हो जो मेरी जड़ों को पानी दे

अपने सारे मंज़र मुझसे ले ले और
मालिक! मेरी आँखों को हैरानी दे

उसकी सरगोशी में भीगती जाए रात
 कतरा-कतरा तन को नई कहानी दे

उसके नाम पे खुले दरीचे के नीचे
कैसी प्यारी खुशबू रात की रानी दे

बात तो तब है मेरे हर्फ़  गूँज के साथ
कोई उस लहजे को बात पुरानी दे 
अक्ब में गहरा समंदर है, सामने जंगल
किस इन्तेहाँ पे मेरा महरबान छोड़ गया